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जीवन के सम्बंध मैं आपसे तीन सूत्र कहता हूँ अगर आपने इन्हें जान लिया समझों जीवन के परम सत्य को अंगीकार करलिया ...

अगर यह तीन सूत्र पूरे हो जाएं  ज्ञान छोड़ देना मन के किनारे  चुपचाप बैठना  और जीवन के प्रत्येक पल में कभी-कभी जाकर देखना कि मैं  कौन हूं मैं कहां हूं अगर कोई यह तीन सूत्र पूरे करें तो अचानक भीतर की दुनिया में  प्रवेश हो जाता है जहां हम कभी नहीं गए वहां हम पहुंच जाते हैं और एक बार वहां पहुंच जाएं  फिर कोई कठिनाई नहीं है  फिर तो क्षणभर में कभी भीतर कभी बाहर  हो सकते हैं और जो मनुष्य भीतर जाने का रहष्य  जान जाता हैं वो जीवन के सारे रहस्यों का मालिक हो जाता है  दुख उसके लिए अर्थहीन हो जाते हैं  मृत्यु उसके लिए असत्य हो जाती हैं और आनंद उसकी स्वास स्वास बन जाती है अमृत उसके कण-कण में छा जाता है  ऐसे हुए बिना जीवन व्यर्थ है अगर हम ऐसे नहीं हो पाए और हम प्रतीक्षा करते रहे  कि कोई हमें दे जाएगा  तो नहीं होगा हमें खुद  कुछ करना पड़ेगा  और यह तीन बातें मैंने  कहीं  इन पर थोड़ा प्रयोग करें मेरी इन बातों को पढ़ने से नहीं इनपर  प्रयोग करने से कुछ होगा  और कुछ होगा  तो जो कुछ मैं कह रहा हूं वो समझ में आएगा  नहीं तो वह भी ठीक से समझ में नहीं आ सकता है कि मैं आपसे क्या कह रहा हूँ  एक बहुत दूसरी दुनिय

विद्यालय में जो शिक्षा दी जा रही है वो लोगों को पड़ा लिखा गमार बना रही हैं...

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Photo by Max Fischer  शिक्षित और पड़े लिखे लोगों को देखकर मुझें शिक्षा से नफरत होती जा रही है की कम से कम जो व्यक्ति शिक्षित नहीं होता तो वो ह्रदय से निर्मल तो होता है निरहंकारी तो होता है उसमें अकड़ तो नहीं होती अपने से बड़ो के प्रति सम्मान का भाव तो रखता है तो  क्या इतना ही काफी नहीं हैं लेकिन जब मैं किसी शिक्षित व्यक्ति को देखता हूँ पड़े लिखें व्यक्ति को देखता हूँ तो वो  दो कौड़ी की कुछ  दस बारह मैं 90 , 95 प्रतिशत बना लेने या कुछ डिग्रीयों को प्राप्त करलेने से या कुछ दो चार प्रमाण पत्र हांसिल करलेने से वो सोचता है कि मैं शिक्षित हो गया पड़ लिख गया लेकिन होता इसका विपरीत है  जो व्यक्ति जितना अधिक पढ़ लिख जाता है वो उतना ही अहंकार और अपूर्व अकड़ से भरता चला जाता क्योंकि जो शिक्षा हमें दी जा रही है वो शिवाय महत्वकांशी बनाने एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करना एक दूसरे को दबाकर आंगे बढ़ने के अलाबा और कुछ भी नहीं सिखा रही है  क्योंकि पिछले तीन वर्षों में जबसे में घर आया हूँ तबसे मैने भी बहुत कुछ इसतरह की झलक देखी है लेकिन आज मैं बेसा बिल्कुल भी नहीं रहा जैसा विद्यालय से निकलते समय था क्योंकि जो

शांति से भोजन करना सीखें ...

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आपलोगों ने ख्याल किया हमलोग पैसा किसलिए कमाते हैं क्यों धन दोलत इकट्ठी करते हैं इसलिए करते है कि हमारे जीवन की ज़रूरते पूरी हो सके और दो वक्त का  ठीक से भोजन मिल सके लेकिन मैने कई लोगों को देखा है कि लोग भोजन भी आराम से नहीं करते  एक हाथ से भोजन करते जा रहे है और दूसरे से मोबाइल चलाते जा रहे है एक तरफ़ तो भोजन कर रहे है और दूसरी तरफ़ दूसरों से बातचीत कर रहे है भोजन पर तो उसका कोई ध्यान ही नहीं है भोजन के स्वाद का तो उसे कोई ख्याल ही नहीं बल्कि उसका भोजन पे ध्यान न होकर  और दूसरे कामों पर ध्यान है मुझें आश्चर्य होता है कि लोग कुछ समय पूर्णतः भोजन के साथ नहीं हो पाते दिन भर में हम भोजन करते ही कितनी बार है ज़्यादा से ज़्यादा दो से तीन बार और उसी समय में साथ में अन्य काम करते रहते है जिसके लिए इतनी महनत कर रहे हो अपना खून पसीना एक कर रहे हो अगर वही आराम से नहीं कर सकते तो क्या अर्थ है कुछ भी करने का कुछ तो इतनी तीव्र गति से भोजन करेंगे जैसे उनकी कोई ट्रैन छूटी जा रही है और अगर छूटती भी हो तो छूट जाने दो लेकिन भोजन को जल्दी बाजी में करने का क्या मतलब है और जब मैं कहता हूँ कि भोजन करने

आज और अभी से न हम किसी के और न कोई मेरा :)

आज मैं एक बात पर विचार कर रहा था कि अगर आज मैं मर गया या अचानक से मेरी मृत्यु हो गई तो मेरे जीवन के आखिरी समय में मेरे साथ मेरे म्रत्यु के क्षण में कौन हमारे साथ जाएगा? और यही बात आज मैंने अपनी मांजी से भी पूँछी की मांजी अगर आज मेरी म्रत्यु हो गई तो हमारे साथ आपलोग जाओगे  ? तो पहले उन्होंने कहा कि बेटा ऐसी बातें नहीं करते लेक़िन मैने कहा आप एक बार बताओ तो तो उन्होंने कहा कि बेटा कोई किसे के साथ नहीं जाता सभी को अकेले ही जाना पड़ता हैं तो मैंने विचार किया हैं जब हमें जाना ही अकेले हैं मरना ही अकेले है तो फिर इस दुनिया में सिवाय परमात्मा के मेरा  कौन हुआ? तो फिर क्या अर्थ हुआ कि मेरा कौन मित्र हैं? कौन माता पिता हैं? कौन मेरे सगे संबंधी हैं कौन मेरे रिश्तेदार हैं? फिर तो ये सभी दिखाबे के लोग हुए इनका  सिर्फ कहने का ही हैं कि मैं तुम्हारे लिए हूँ तुमसे प्रेम करता हूँ की मैं तुम्हारा मित्र हूँ तुम्हारा पिता हूँ तुम्हारी माँ हूँ कि मैं तुम्हारे बगैरह जी नहीं सकता ? ऐसे झूठे और दिखाबे के लोगों को अपने जीवन से जोड़कर क्या करूंगा जिनका कोई अर्थ ही  नहीं बनता इसलिए ये बात मेरे लिए क

SAKET Talk's ...

https://youtu.be/GyNmQs5ueQ8

समय के साथ हम सभी के एक दूसरे से रिश्ते खत्म हो जाएंगे ...

समय के साथ हम सभी के एक दूसरे से रिश्ते खत्म हो जाएंगे, सिर्फ यह सोचकर कि उसने मुझे याद नहीं किया तो मैं क्यों उसे याद करूं? उसने मुझे फोन नहीं लगाया तो मैं उसे क्यों लगाऊं ?उसने मुझसे बात नहीं की तो मैं क्यों करूं ????? :) जबतक हम लोग अहंकार से भरे है जबतक हमारे भीतर अहंकार जीवित हैं तब तक हमारे अंदर ऐसे ही भाव उठते रहेंगे की  पहले मैं ऐसा क्यों करूँ मैं क्यों उससे पहले बात करूँ मैं कहता हूँ अगर आप पहले कदम आंगे बढ़ाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं हैं कुछ भी गलत नहीं हैं अगर आप किसी व्यक्ति से पहले  दो पल प्रेम से बात करलेंगे तो इसमें क्या गलत हैं अगर हम अपने व्यक्तित्व को थोड़ा सा भी विनम्र बनाना सीख जाएं तो उसी दिन हमारा अहंकार हमेशा के लिए समाप्त हो सकता हैं तिरोहित हो सकता है, लेक़िन नहीं हमलोगों ने  तो कभी झुकना सीखा ही नहीं हमें तो लगता हैं कि हमारी नाक कट जाएगी हमारी बेज्जती हो जाएगी  इसीलिए मैं कहता हूँ पहले हमें समर्पण का भाव सीखना पड़ेगा अपने व्यक्तित्व को विनम्र बनाना पड़ेगा, प्रेमपूर्ण  बनाना पड़ेगा तभी हम अहंकार से सदा के लिए मुक्त हो सकते इससे पहले नहीं लेक

बच्चों को प्रत्येक के प्रति प्रेमपूर्ण होने की शिक्षा दीजिये ;)

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 Photo by Gustavo Fring from pixels  कोई भी अपने छोटे भाई बहन को ऐसी शिक्षा न दे कि तुम मेरा आदर करो सम्मान करो मेरे प्रति प्रेमपूर्ण रहो क्योंकि मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ या तुम्हारा बड़ा भाई हूँ ऐसा करने से आप उस बच्चें  के पूरे व्यक्तित्व में जहर घोल देंगे उसका पूरा जीवन नष्ट करदेंगे क्योंकि फिर वो बच्चा घर में आपके प्रति तो प्रेमपूर्ण होगा, आपके प्रति आदर, सम्मान का भाव रखेगा लेकिन रास्ते पे जो लोग उसे मिलेंगे उनके प्रति क्रोध से भरा रहेगा घ्रणा से भरा रहेगा फिर वो किसी राह चलते किसी राहगीर का सम्मान नहीं कर सकेगा उनके प्रति प्रेम से नहीं भर सकेगा क्योंकि फिर वो सोचेगा की आप हमारे कौन लगते हैं जो मैं तुम्हारा सम्मान करू, तुम्हारा आदर करूं फिर वह बच्चा हर व्यक्ति में पहले संबंध खोजने लगेगा कि तुम मेरे रिश्तेदार हो मेरे भाई हो या मित्र हो इसलिए मैं आज आप सभी से फिर  कहता हूँ अपने बच्चों को प्रत्येक के प्रति प्रेमपूर्ण होने की शिक्षा दीजिये बचपन से ही बच्चें के पूरे व्यक्तित्व को इतना सुंदर बनाओ जिससे बच्चा अपने पूरे व्यक्तित्व के प्रति प्रेम से भर जाए जिससे जीवन में उसे किसी के