विद्यालय में जो शिक्षा दी जा रही है वो लोगों को पड़ा लिखा गमार बना रही हैं...

Photo by Max Fischer 

शिक्षित और पड़े लिखे लोगों को देखकर मुझें शिक्षा से नफरत होती जा रही है की कम से कम जो व्यक्ति शिक्षित नहीं होता तो वो ह्रदय से निर्मल तो होता है निरहंकारी तो होता है उसमें अकड़ तो नहीं होती अपने से बड़ो के प्रति सम्मान का भाव तो रखता है तो  क्या इतना ही काफी नहीं हैं

लेकिन जब मैं किसी शिक्षित व्यक्ति को देखता हूँ पड़े लिखें व्यक्ति को देखता हूँ तो वो  दो कौड़ी की कुछ  दस बारह मैं 90 , 95 प्रतिशत बना लेने या कुछ डिग्रीयों को प्राप्त करलेने से या कुछ दो चार प्रमाण पत्र हांसिल करलेने से वो सोचता है कि मैं शिक्षित हो गया पड़ लिख गया लेकिन होता इसका विपरीत है

 जो व्यक्ति जितना अधिक पढ़ लिख जाता है वो उतना ही अहंकार और अपूर्व अकड़ से भरता चला जाता क्योंकि जो शिक्षा हमें दी जा रही है वो शिवाय महत्वकांशी बनाने एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करना एक दूसरे को दबाकर आंगे बढ़ने के अलाबा और कुछ भी नहीं सिखा रही है

 क्योंकि पिछले तीन वर्षों में जबसे में घर आया हूँ तबसे मैने भी बहुत कुछ इसतरह की झलक देखी है लेकिन आज मैं बेसा बिल्कुल भी नहीं रहा जैसा विद्यालय से निकलते समय था क्योंकि जो शिक्षा मैने विद्यालय से अर्जित की उस शिक्षा को मैं पूर्णतः भुला चुका हूँ

क्योंकि उस शिक्षा ने निरंतर मुझें महत्वकांशी और शिबाय प्रतिस्पर्धा के और दुसरे को दबाकर आंगे बढ़ने के अलाबा और कुछ न सिखा सकी इसलिए हमारी पड़े लिखे लोगों से शिक्षित लोगों से बनती नहीं


और हमेशा अपनी पूरी कोशिश करता हूँ कि शिक्षित लोगों से दूर रहूं क्योंकि मैं शिक्षित और पढ़े लिखे लोगों को पढ़ा लिखा गमार कहता हूँ क्योंकि शिक्षित लोगों के लिए इससे अधिक सम्मानीय शब्द मेरे पास नहीं है ...

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