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Showing posts from March, 2020

कुछ बातें ;)

 कुछ वर्षों के बाद जब आपलोग मुझें देखेंगे,मैं अपने जीवन पथ पर हमेशा अकेला चलता हुआ मिलूंगा वहां सिर्फ मेरे अलाबा कोई दूसरा नहीं होगा मैं किसी के साथ दौड़ता नहीं मिलूंगा और न ही आज में औरों की तरह किसी दौड़ का हिस्सा हूँ एक समय था जब मुझें भी औरों की तरह बहुत इक्षायें थी बहुत महत्वकांक्षाएं थी लेकिन जितना जीवन की वास्तविकता को समझता जा रहा हूँ उतना ही अंदर से शून्य होता जा रहा हूँ, क़्योंकि सच कहूँ तो मुझें अपने जीवन कुछ भी नहीं बनना और न ही कहीं पहुंचना हैं और न ही कुछ पाने की चाहत हैं और मुझें मालूम हैं हमारे घर वाले भी मुझें आंगे चलकर स्वीकार नहीं कर सकेंगे खैर इसका जबाब अभी दे पाना मुश्किल होगा और मुझें पता हैं मुझें अपने पथ पर हमेशा अकेला ही चलना पड़ेगा और इसमें कुछ गलत भी नहीं हैं क्योंकि जीवन की ठोकरों ने मुझें इतना मजबूत बना दिया हैं कि जहां भी रहूंगा जैसा रहूंगा खुश रहूंगा फिर भले ही मेरे पास कुछ भी न हो फिर चाहें हमारे साथ कोई भी न हो हालांकि परिवार से हमारा संबंध सिर्फ तब तक हैं जब तक हमारी मांजी जीवित हैं फिर उसके बाद शायद मुझें कोई भी नहीं देख पाएगा मैं हमेशा अंजान बनकर ही रहन

हर नियम कायदे स्त्रियों के लिए ही क्यों ????

कामसूत्र कहता हैं पहले हमारे समाज में स्त्रियों के कौमार्य पर बहुत अधिक जोर दिया जाता था अगर किसी स्त्री का कौमार्य भंग हो जाता था तो उनके विवाह करने में बहुत परेशानी होती थी, लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा कोई भी नियम नहीं था उसे पूरी छूट थी  वो जिस स्त्री से चाहे संबंध बना सकता था उसके लिए ऐसे कोई नियम नहीं थे, मुझें समझ नहीं आता हमारे समाज में हमेशा से हर नियम कायदे,मर्यादा,स्त्रियों के लिए ही क्यों बनाई जाती हैं? अरे मैं तो भूल गया था अभी तक के सारे शास्त्र और नियम पुरुषों ने इजाद किए हैं तो फिर ऐसा कौन पुरूष होगा जो अपने हित में नियम नहीं बनायेगा । खैर :) Saket 💕

स्त्रियां संभोग से समाधि की जलक अनुभव क्यों नही कर पाती क्या कारण हैं । ?????

कामसूत्र कहता हैं पहले हमारे समाज में बहुत सुंदर व्यवस्था हुआ करती थी जब किसी का विवाह होता था तो पहले उसे कामसूत्र के बारें में सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी उन्हें संभोग करने के सभी प्रकार के आसनों का ज्ञान दिया जाता था जिससे उनका दाम्पत्य जीवन अच्छा और खुशहाल बना रहें, लेकिन आज बिल्कुल विपरीत कार्य हो रहा हैं लोगों को सेक्स करने के लिए जो सम्बंधित और जो  जरूरी आसन हैं उनके बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी ही नहीं पुरुषों को इसका कोई पता ही नहीं कि हमारे देश में वात्स्यायन जैसे महापुरुष ने सेक्स करने के लिए 64 आसनों का वर्णन किया हैं लेकिन आज कौन समझना चाहता हैं लोगों को लगता हैं क्या अब हमें सेक्स करने के लिए भी सीखना पड़ेगा लोगों को लगता हैं हमें सबकुछ आता हैं लेकिन ऐसा सोचना उनकी गलतफेमि हैं, अगर आप किसी पुरुष से संभोग के आसनों के बारें में पूछेंगे तो वह सिर्फ अभी तक एक आसन से परचित हो सका हैं वो हैं स्त्री को नीचें रखना और खुद उसके ऊपर चढ़ जाना और बस अकेला उचकता रहेगा जैसे किसी मखवली  गद्दे पर मलक रहा हो और कुछ ही समय में अपनी ऊर्जा नष्ट करदेगा और सो जाएगा पुरुष कभी सोचता ही

राम की अग्नि परीक्षा क्यों नहीं होती ???

पूरब की स्त्री गुलाम है उसने कभी यह घोषणा ही नहीं की कि मेरे पास भी आत्मा है वह चुपचाप पुरुष के पीछे चल पड़ती है अगर राम को सीता को फेंक देना है तो सीता की कोई आवाज नहीं है अगर राम कहते हैं कि मुझे शक है तेरे चरित्र पर तो उसे आग में डाला जा सकता है यह बड़े मजे की बात है यह किसी के ख्याल में कभी नहीं आती कि सीता लंका में बंद थी अकेली थी तो राम को उसके चरित्र पर शक होता है लेकिन सीता को राम के चरित्र पर शक नहीं होता वे इतने दिन अकेले थे अगर अग्नि से गुजरना ही है तो राम को आगे और सीता को पीछे गुजर ना चाहिए। जैसा कि हमेशा शादी विवाह में राम आगे रहे और सीता पीछे रहीं चक्कर लगाती रहीं फिर आग में घुसते वक्त सीता अकेले आग में चली गई राम बाहर खड़े निरीक्षण करते रहे बड़े धोखे की बात मालूम पड़ती है ! और तीन चार हजार वर्ष हो गए हैं रामायण को लिखे मैं आपसे पहली दफे कह रहा हूं। यह बात कभी नहीं उठाई गई कि राम की अग्नि परीक्षा क्यों नहीं होती नहीं ?  पुरुष का तो सवाल ही नहीं है, यह सब सवाल स्त्री के लिए हैं बड़ी अजीब बात मालूम पड़ती हैं ???? स्त्री की कोई आत्मा नहीं उसकी कोई आवाज नहीं फिर अग्नि

हमेशा अपने जीवन में निश्वार्थ और निष्पक्ष भाव से सही का चुनाव कीजिए ,और सही का साथ दीजिए !!

आप लोगों ने कभी ख्याल किया है अगर कभी आस पड़ोस में हमारे माता-पिता का किसी से लड़ाई झगड़ा हो जाता है, तो उनका बच्चा जो की शिक्षित है वह बिल्कुल भी नहीं देखता कि आखिर कौन सही है और कौन गलत, वह सिर्फ यह देखता है कि सामने वाला व्यक्ति मेरे बाप से लड़ रहा है, मेरी मां से लड़ रहा है, तो वो बच्चा अपने माँ बाप का पक्ष लेने लगता हैं उसे इससे कोई मतलब नहीं कि आखिर सही और गलत कौन हैं  हालांकि मेरी समझ कहती हैं कि  एक शिक्षित व्यक्ति  की सबसे पहली प्राथमिकता यह होना चाहिए  कि पहले वो  पता करें कि आखिर दोनों में सही या गलत कौन है कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे माँ बाप ही गलत हो अगर सही अर्थों में बच्चा शिक्षित और समझदार होगा तो जो व्यक्ति सही हैं उसका साथ देगा न कि गलत का वह निष्पक्ष और निस्वार्थ भाव से निर्णय लेगा फिर चाहे उसके माता पिता ही क्यों न हों !!

हमें अपने कार्य को खेल समझकर कर करना चाहिए !!

  कार्य और कृत्‍य के प्रति हमें दृष्‍टिकोण बदलना होगा।  कार्य को खेल समझना चाहिए, कार्य नहीं। कार्य को लीला की तरह, एक खेल की तरह लेना चाहिए। इसके प्रति तुम्‍हें गंभीर नहीं होना चाहिए। बस ऐसे ही जैसे बच्‍चे खेलते है। यह निष्‍प्रयोजन है। कुछ भी पाना नहीं है। बस कृत्‍य का ही आनंद लेना है। यदि कभी-कभी तुम खेलो तो अंतर तुम्‍हें स्‍पष्‍ट हो सकता है। जब तुम कार्य करते हो तो अलग बात होती है। तुम गंभीर होते हो। बोझ से दबे होते हो। उत्‍तरदायी होते हो। चिंतित होते हो। परेशान होते हो। क्‍योंकि परिणाम तुम्‍हारा लक्ष्‍य होता है। स्‍वयं कार्य मात्र ही आनंद नहीं देता, असली बात भविष्‍य में, परिणाम में होती है। खेल में कोई परिणाम नहीं होता। खेलना ही आनंदपूर्ण होता है। और तुम चिंतित नहीं होते। खेल कोई गंभीर बात नहीं है। यदि तुम गंभीर दिखाई भी पड़ते हो तो बस दिखावा होता है। खेल में तुम प्रक्रिया का ही आनंद लेते हो। कार्य में प्रक्रिया का आनंद नहीं लिया जाता। लक्ष्‍य, परिणाम महत्‍वपूर्ण होता है। प्रक्रिया को किसी न किसी तरह झेलना पड़ता है। कार्य करना पड़ता है। क्‍योंकि परिणाम पाना होता है। यदि परिणाम